28 फ़रवरी 2014

समीक्षा : "डाली मोंगरे की" : गज़ल संग्रह नीरज गोस्वामी - मयंक अवस्थी

समीक्षा
"डाली मोंगरे की" गज़ल संग्रह नीरज गोस्वामी
प्रकाशक शिवना प्रकाशन
पी सी लैब सम्राट काम्प्लैक्स बेसमेण्ट
बस स्टैण्ड सीहोर—466001 ( म प्र)  

" डाली मोगरे की" – इसकी खुश्बू दिलकश है

ग़ज़ल किस सबब ज़िन्दा है ?!! क्या सिर्फ शायरों, रिसालों और मुशाइरों और गायकों की बज़्ह से ?!या यह जवाब कुछ अधूरा है ?!! दरअस्ल  यह जवाब अधूरा है क्योंकि इन सभी श्रेणियों में आर्थिक और सामाजिक परिपूरण की तवक्को भी छुपी है – एक सबसे महत्वपूर्ण वर्ग का अभी इस परिभाषा में ज़िक्र रह गया है । गज़ल अपने दीवानों की वज़्ह से अभी भी ज़िन्दा और ताबिन्दा है। कई कलायें लुप्त हो गई क्योंकि उनके नुमाइन्दे और पैरोकार तो थे लेकिन उनके दीवाने नहीं थे –लेकिन गज़ल विधा भाग्यशाली है कि उसके दीवाने अभी भी हैं और बगैर किसी आर्थिक या सामाजिक उपलब्धि की तवक्को में ये गज़ल और सिर्फ गज़ल से इतनी मुहब्बत करते हैं कि उनकी शख़्सीयत में गज़ल इस तरह पोशीदा रहते है जैसे फूल में खुश्बू !! गज़ल  किसी की भी हो कहीं भी कही जा रही हो लेकिन इसके दीवाने इसे आसमान पर बनाये रखते हैं –ऐसे ही एक दीवाने को मैं भी जानता हूँ जिनका नाम है नीरज गोस्वामी !!!

नीरज ग़ज़ल के दीवाने हैं और दीवानगी क्या नहीं कर सकती – एक क़ैस  पूरे दश्त को आबाद कर देता है और एक फरहाद पहाड़ काट देता है !!! नीरज भी ग़ज़ल को पढते नहीं जीते हैं और इसकी निशानदेही उनका ब्लाग करता है जो एक बागे - रिज़्वाँ का नज़ारा पेश करता है – किसी ग़ज़ल/ शाइर  को उन गैर आबाद हल्कों तक पहुँचाना जहाँ अन्यथा उसकी रसाई नहीं हो सकती थी – चाँद के दाग़ न देखना सिर्फ चाँदनी के सन्दर्भों में चाँद को  परिभाषित करना –यह उन्होंने शाइरों और उनकी शाइरी के लिये अर्से से किया है और आज भी कर रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों इस दीवाने के पैकर से एक शाइर नुमाया हुआ जो शाइस्तगी और इज़हार के मुआमले में इतना प्रभावशाली साबित हुआ कि उसके कई अशआर  बरबस ही मुँह से वाह वाह निकलवा ले गये। नीरज जी के शाइर की तबीयत और तर्बियत पर कोई सवाल इसलिये नहीं उठता कि उनका ब्लाग और उअनके गुरु सर्वश्री  पंकज सुबीर इस सिलसिले में पहले से ही ख़्यातिलब्ध नामो में शुमार हैं ।

"डाली मोंगरे की" पहला मरहला है इस शाइर के सफर का और –निश्चित रूप से नीरज सारी प्रशंसा और सारे प्रोत्साहन के हकदार हैं। इस संकलन में 98 गज़लें हैं –जो अनुभूति और इज़हार के सन्योग या द्वन्द से उपजी हैं। ये गज़लें ख्याल की दृष्टि से औसत , भाषा की दृष्टि से बड़ी हद तक निर्दोष और स्वीकार्य और प्रयास की दृष्टि से बिना रुके ताली बजाने के इम्कान रखती हैं। तस्व्वुफ़ पिरोने की कोशिश नहीं की गई है जिसके लिये नीरज जी को बधाई और किसी अन्य शाइर की रिप्लिका बनने की कोशिश भी नहीं की गई है –जिसके लिये वे प्रशंसा के हकदार हैं।इसके सिवा एक बात जो विशेष रूप से उल्लेखनीय है और हर उम्र के शाइर के लिये प्रेरणास्रोत हो सकती है वो ये है कि जिस उम्र में नीरज जी का यह संग्रह प्रकाशित हुआ है उस  उम्र तक बेशतर शाइरों में संग्रह छपवाने के हौसले की हौसलाशिकनी हो चुकी होती है। उनका जोश उनकी उमंग और उनकी शाइरी ज़िन्दगी जीने की कला सीखने वालों के लिये एक वृहत प्रेरणास्रोत का कार्य कर सकती है। बेशतर अश आर मश्वरे और कहन की शक़्ल में हैं यानी शाइर का तसव्वुर्  किसी से संवाद करने के मर्कज़ पर तख़्लीक में उतरता है – इसमे आत्मालाप की शैली बहुत कम है – जिसका अर्थ यह है कि शाइर व्रहत सामाजिक दायरों में जीता रहा है और जीने का आदी है – लेकिन भीड़ में तनहाई का ख्याल और अपना अलग रास्ता बनाना उसके जेहन में ज़िन्दा है --

जुदा तुम भीड़ से होकर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है

समन्दर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है  

शाइर के पास एक अंतर्दृष्टि है जो सतही प्रभावशीलता से अलग हट कर देख सकती है --

देखने में मकाँ जो कच्चा है
दर हक़ीकत बड़ा ही कच्चा है

ज़िन्दगी कैसे प्यारे जी जाये
ये सिखाता हरेक बच्चा है

नीरज जी का स्वर सामाजिक प्रवक्ता का स्वर है और उनकी नज़र से ज़ुबान तलक जो फलसफहा उतरता है वो तस्लीम किया जाने काबिल है --

बस इसी सोच से झूठ काइम रहा
बोल कर सच भला हम बुरे क्यों बने

ज़िन्दगी खूबसूरत बने इस तरह
हम कहें तुम सुनो तुम कहो हम सुनें

प्रचलित शब्दों के विभव को उन्होंने पहचाना है और लफ़्ज़ को दायरे से आगे के मआनी देने में वो समर्थ हैं

साँप रस्सी को समझ डरते रहे
और सारी ज़िन्दगी मरते रहे

रात भर  आरी चलाई याद ने
रात भर  खामोश हम चिरते रहे

छोटी बहर में कहना मुश्किल होता है लेकिन नीरज जी ने प्रभावशाली शेर कहे हैं --

मैं राज़ी तू राज़ी है
पर गुस्से में काज़ी है

आँखें करती हैं बाते
मुँह करता लफ़्फाज़ी है

नीरज की कई गज़लों में याद रखने वाले शेर मिल जाते हैं जो अपनी तज़गी और कहन की नवीनता के सबब खासे प्रभावित करते हैं --

कब तक रखेंगे हम भला इनको सहेज कर
रिश्ते हमारे शाम का अखबार हो गये

किसी की याद चुपके से चली आती है जब दिल में
कभी घुँघरू से बजते हैं , कभी तलवार चलती है

तुझमें बस तू बसा है मुझमे मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता

खिड़कियों से झाँकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिये

जब दिलों में रोशनी भर जायेगी
वो दिवाली भी कभी तो आयेगी

तनहाई में गाया कर
खुद से भी बतियाया कर

हर राही उस से गुज़रे
ऐसी राह बनाया कर

नीरज का संकलन एक ऐसे समय पर आया है –जब गज़ल भाषा की सन्धि रेखा पर खड़ी है –इस समय गज़ल की ज़ुबान को हिन्दुस्तान की सर्वस्वीकार्य ज़ुबान बनाने का आवेग ज़ोर पकड़ रहा है –ऐसे में अदब और अवाम की शाइरी भी एक दूजे को आने वले वक़्त में हम आहंग करेगी। अदब की वरीयता फिक्रो –फन के अरूज़ की पैरवी करती है और अवाम की चाहत सम्प्रेषणीय भाषा में कही गई गज़ल है। गज़ल की मूल 19 बहरो में कुछ ही अधिकतर प्रयोग की जाती हैं। अच्छी शाइरी का अर्थ है कि आप अपने समय के साथ खुद को सिंक्रोनाइज़ कर सकें। मुझे उनकी तख़्लीक में वो अनासिर दीख पडते हैं जो दौरे हाज़िर में स्क्रीन पर बने रहने के लिये आवश्यक होते हैं। नीरज जी के पास आश्वस्त करने वाला शब्द भंडार है – हिन्दी और उर्दू ज़ुबान और लहजे का एक सुन्दर सम्मिश्रण उनके पास है। ग़ज़ल के व्याकरण का उनको बखूबी ज्ञान है और उनका इज़हार दिलो जेहन तक रसाई रखने में समर्थ है। यह संकलन तस्लीम और इस पर उनको बधाई –और एक मश्वरा मैं उनको देना चाहूँगा –तस्व्वुर में खुद को खुदा को और खला को शाहिद बना कर कुछ गज़लें कहिये –इससे गज़ल में तस्व्वुफ़ , वुसअत और शीशागरी के इम्कान खुलेंगे। मालिक की दुआ से आपकी सिरिश्त एक ज़रख़ेज़ ज़मीन रखती है और आपके शाइर के पास बहुत कुछ ऐसा है जिस पर रश्क किया जा सकता है।

किसी पौधे में फूल का आना विधायक ऊर्जा के विभव को सकारात्मक दिशा मिलना होता है। नीरज जी जैसे साहित्यानुरागी के संकलन का प्रकाशित होना ऐसी ही सम्भावना के साकार हो जाने जैसा है। ये ऐवान उन्होंने खुद अपनी मेहनत से बनाया है।  " डाली मोगरे की " के मंज़रे आम होने पर  मुझे जितनी खुशी है मैं इसका बयान नहीं कर सकता –उन्होंने अपनी ऊर्जा को एक बेहद सार्थक दिशा उसी दिन दे दी थी जब तब्सरा लिखने के इलावा खुद भी शेर कहना आरम्भ कर दिया था और ख्वाब की ताबीर भी जल्द हुई जब ये संकलन हमारे हाथों मे आ गया है। मेरा दृढ विश्वास है कि जिस व्यक्ति के संस्कार प्रबल होते हैं  जिसका मानस निष्कलुष होता है जिसमें प्रेम , धैर्य और समकालीन समाज और सम्धर्मियों को को सम्मान और सहारा देने जिअसे उच्च मानवीय गुण होते हैं वही अपने दौर का सच्चा और अच्छा शाइर हो सकता है –कहने की ज़रूरत नहीं कि –नीरज जी के व्यक्तित्व में यह सभी गुण ईश्वर ने वरदान स्वरूप बह्र दिये हैं – उन्होंने अच्छे शेर कहे हैं और भविष्य में वो बेशतर बुलन्दियों पर हमको दिखाई देगें। माँ सरस्वती अपने इस पुत्र पर अपना आशीष बनाये रखे। 

असीमित शुभ्रकामनाओं सहित
–मयंक अवस्थी

5 टिप्‍पणियां:

  1. jis saadgee se Neeraj ji ne ghazalen kahee hain usee saadgee se Mayank ji
    ne smeeksha likh kar man loot liyaa hai .Bahut khoob !

    जवाब देंहटाएं
  2. ये गज़लें ख्याल की दृष्टि से औसत....

    मयंक भाई मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ , बाकि इसके अलावा आपने जो कुछ भी मेरी ग़ज़लों और मेरे बारे में कहा है उस से मेरे प्रति आपका प्यार झलकता है । ये प्यार मेरे लिए कितना कीमती है उसे लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता । मेरे लेखन की सबसे बड़ी उपलब्धि आप और आप जैसे दूसरे गुनी जनों से प्यार पाना है।

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कुछ बात है हम सभी में !! –वक़्त की कसौटी पर हम अपने इम्कान खोजते रहते हैं = आपने ज़िन्दगी में बहुत खूबसूरत डगर अपने लिये चुनी है – मेरे देखे दो ही खूबसूरत अहसास हैं ज़िन्दगी में – अच्छा काव्य पढना और अच्छा काव्य सृजन !!! आप के अहसास की दुनिया खुश्बू और खूबसूरती से भरी रहेगी नीरज साहब !!! बहुत बहुत बधाई—मयंक

      हटाएं